“चल कुतियाँ बन” चोदता चोद्ता वो अचानक बोला
“कुतिया चोदनि है तो ला दूं एक. औरत की चूत कम पड़ रही है?”
“साली बातें ना बना, कॉद्ढ़ी हो” उसने ज़बरदस्ती उसकी कमर पकड़ कर उल्टा कर दिया और अपना लंड फिर चूत में घुसा दिया
“गांद थोड़ी उपेर कर ना” वो उल्टी लेटी हुई थी और उसको अपने लंड घुसने में तकलीफ़ हो रही थी “कॉद्ढ़ि होने को कहा था, पुत्थि लेटने को नही”
“क्यूँ बेहेन्चोद. तेरी बीवी की गांद है जो जैसे तू चाहेगा वैसे हो जाएगी?” वो अब सीधी गाली देने पर उतर आई थी.
कुच्छ देर बाद वो उस घर से बाहर निकली. घड़ी में दिन के 2 बज रहे थे. उसने धूप का चश्मा अपनी आँखों पर लगाया और कार का दरवाज़ा खोल कर अंदर बैठ गयी.
“ओह गॉड!!! कितनी गर्मी है” ए.सी. ऑन करते हुए वो अपने आप से बोली और कार स्टार्ट की.
वो इस बात से पूरी तरह बेख़बर थी के थोड़ी ही दूर खड़ी एक कार के काले रंग के शीसे के पिछे से किसी ने उसको घर से निकलते देखा था.
“गर्मी ने तो इस बार मार ली” सब-इनस्पेक्टर रमेश तिवारी जीप में बैठे बैठे पेप्सी के घूंठ मारता हुआ बोला.
“सो तो है. उपेर से साला ये पोलीस की गाड़ियों में पता नही ए.सी. क्यूँ नही लगवाते” इनस्पेक्टर अजय सिंग अपनी शर्ट के बटन खोलता हुआ बोला
“बारिश हो जाए तो थोड़ा सुकून हो” रमेश ने पेप्सी ख़तम की और जेब से पैसे निकालता हुआ बोला
“नही होगी भाई, नही होगी” अजय ने गाड़ी से गर्दन बाहर निकाली और आसमान की तरफ देखता हुआ बोला “एक इस साले भगवान ने भी गांद में अंगुली दे रखी है”
“चलें सर?” रमेश ने जीप स्टार्ट की और इंस्पेक्टोट के इशारे पर आगे बढ़ा दी.
“वो असलम का सुना क्या सर?”
“क्या?” अजय उसकी तरफ देखता हुआ बोला
“बाहर आ गया वो”
“अच्छा? कब?”
“अभी पिच्छले हफ्ते ही” रमेश ने जवाब दिया और एक हाथ से गाड़ी चलाते हुए ही सिगरेट जलाई.
“बैल कैसे हो गया साले का?”क्या यार? एक तो इतनी गर्मी और फिर उपेर से ये?” अजय सिगरेट की तरफ इशारा करता हुआ बोला
“गम-ए-ज़िंदगी और ये धुआँ” रमेश ने हॅस्कर जवाब दिया
“तुझे काहे का गम है?”
“क्या कहूँ सर. वो कहते हैं ना,
सारे ज़माने का दर्द,
एक कम्बख़्त हमारे जिगर में है ….”
“बआउन्सर था. वो असलम कहाँ है आजकल?” अजय ने शेर को अनसुना करते हुए कहा
“इधर शहर में ही है सर. बाहर आए हफ़्ता नही हुआ साले को और फिर से पंख फॅड्फाडा रहा है”
“मतलब?”
सुनने में आया है के कोई ड्रग डील कर रहा है”
“कब?”
“एग्ज़ॅक्ट्ली तो पता नही सर जी पर हाल फिलहाल में ही करेगा, ऐसा सुना है”
“ह्म्म्म्मम” अजय ने साँस छ्चोड़ते हुए कहा “वैसे तू क्या कर रहा है आज रात?”
“कुच्छ ख़ास नही सर. बताओ”
“आजा शाम को घर पे”
“आज नही आ पाऊँगा सर” रमेश ने कहा “प्लान है मेरा कुच्छ”
“साला अभी मैने पुछा के क्या कर रहा है तो बोला के ख़ास नही कुच्छ और अब कह रहा है के प्लान है?”
“समझा करो ना सर” रमेश दाँत दिखाता हुआ बोला
“तेरी बातें नही समझनी भाय्या मैने. कल का बनाएँ? काफ़ी दिन हो गये साथ दारू पिए हुए.”
“हां कल का बना लो सर” रमेश ने जवाब दिया
टेबल पर रखा फोन बजा तो असलम ने उठाया
“कौन है?”
“मैं बोल रहा हूँ” दूसरी तरफ से आवाज़ आई
“हां बोलो” कहर असलम ने फोन उठाया और कमरे के एक कोने की तरफ आ गया ताकि उसकी बात कमरे में मौजूद उसके लड़के ना सुन सकें
“आज रात” फोन पर मौजूद शख़्श ने जवाब दिया
“आज रात? और अभी बता रहे हो मेरे को? थोड़ा टाइम तो देते”
“तूने कौन सा साले आफ्रिका से आना है जो थोड़ा टाइम देता मैं तुझे” दूसरी तरफ से आवाज़ आई
“ठीक है. वो इनस्पेक्टर का चक्कर तो नही पड़ेगा ना? साला उसी के चक्कर में फस गया था पिच्छली बार मैं” असलम ने एक नज़र अपने लड़को पर डाली के कहीं वो उसकी बात सुन तो नही रहे
“नही इनस्पेक्टर का कोई चक्कर नही है”
“तो किधर आने का है?” असलम ने पुछा
“मेरे घर पे”
“घर पे? काहे को?”
“माल मेरे घर पे ही है. वहीं से उठा लेना तुम लोग”
“कोई ख़तरा तो नही ना?” असलम ने पुछा
“साला चीनी खारदिने नही जा रहा तू बाज़ार कि ख़तरा नही होगा. इस काम में हमेशा ख़तरा होता है” दूसरी तरफ मौजूद आदमी थोड़ा चिड़ सा गया
“ठीक है ठीक है आता हूँ मैं. कितने बजे?”
“12”